आतिशदान के पास
गुलाबी हिद्दत के होले में सिमटकर
तुमसे बातें करते हुए
कभी कभी तो ऐसा लगा है
जैसे ओस में भीगी घास पे
उसके बाजू थामे हुए
मैं फिर नींद में चलने लगी हूँ
आतिशदान के पास
गुलाबी हिद्दत के होले में सिमटकर
तुमसे बातें करते हुए
कभी कभी तो ऐसा लगा है
जैसे ओस में भीगी घास पे
उसके बाजू थामे हुए
मैं फिर नींद में चलने लगी हूँ