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नई करवट / निर्मला जोशी

सुलझने का जतन
कर रही थी विकल धड़कन
मेहमान मौसम का दे गया एक उलझन

हो गई पहचान फिर
कठिन अपने आप से
एक अनबन हो चली
तब पुण्य से पाप से
बात अपनी बदलने लगा यहाँ कन-कन

ऩई करवट हवा की
नई चितवन फूल की
रंग कुछ रूप बदले
यह कहानी धूल की
ज्योति की ज्वाला सघन आ रही पास छन छन

सयानापन खेत की
बालियों के ध्यान में
कह रहा कौन कच्ची
कैरियों के कान में
बात गहरी है बड़ी ज़िंदगी की यह तपन