गीत या नवगीत
जो भी लिख,
आदमी के पक्ष में ही दिख !
विधा कोई
है नहीं छोटी
कहन का अपना स्वचेतस रूप ।
कथ्य, केवल
कथ्य होता है
रम्य हो या रँग से विद्रूप ।
शिल्पविधि
है इसी की चेरी,
हेतु जिसमें खुलें न्यूनाधिक !
रचे में बोले न
यदि मिट्टी,
तुष्टि के सम्मोह की कर जाँच ।
कुछ नहीं होता
करिश्मों से,
हो न जब तक भावना में आँच ।
स्वयँ से
बाहर निकल कर देख
दीन-दुनिया से न जाए छिक !
गा-बजा कर
आत्मश्लाघा में,
नए के सँघर्ष से मत भाग ।
तोड़ परतें
जगा
अर्जित कर,
लोकमानस से सृजन की आग ।
ज़िन्दगी की
टूट का प्रज्ञान,
सम्भ्रमों पर ही न जाए टिक !
गीत या नवगीत
जो भी लिख,
आदमी के पक्ष में ही दिख !