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नए नमूने / दिनेश सिंह

कई रंग के फूल बने
काँटे खिल के
नई नस्ल के नये नमूने
बेदिल के

आड़ी-तिरछी
टेढ़ी चालें
पहने नई-नई सब खालें

परत-दर-परत हैं
पँखुरियों के छिलके

फूले नये-
नये मिजाज में
एक अकेले के समाज में

मेले में
अरघान मचाए हैं पिलके

भीतर-भीतर
ठनाठनी है
नोंक-झोंक है, तनातनी है

एक शाख पर
झूला करते
हिलमिल के

व्यर्थ लगें अब
फूल पुराने
हल्की ख़ुशबू के दीवाने

मन में लहका करते थे
हर महफिल के