बंदर जी ने कहा गधे से-
'शुरू हुआ नव वर्ष, सूखे!
नए-नए उपहार मिलेंगे,
खूब मनाओ हर्ष, सूखे!
सुनता हूँ, लगने वाला है-
कुछ दिन बाद नया संवत्,
तुझे मिलेगी श्रम से छुट्टी,
मुझे मदारी से फुर्सत!
कहा गधे ने-'बस, इतना ही
है मुझको विश्वास, सूखे!
तुझे मिलेंगे बासी छोले,
मुझको सूखी घास, सखे!
राजनीति के बाजारों में,
है 'वादों' का मोल कहाँ?
अगर ढोल में पोल न होती,
सुनते बढ़िया बोल कहाँ?'