जैसे मुझे जानता हो बरसों से
देखो, उस दढ़ियल बरगद को देखो
मुझे देखा
तो कैसे लपका चला आ रहा है
मेरी तरफ़
पर अफ़सोस
कि चाय के लिये
मैं उसे घर नहीं ले जा सकता
जैसे मुझे जानता हो बरसों से
देखो, उस दढ़ियल बरगद को देखो
मुझे देखा
तो कैसे लपका चला आ रहा है
मेरी तरफ़
पर अफ़सोस
कि चाय के लिये
मैं उसे घर नहीं ले जा सकता