Last modified on 8 जनवरी 2009, at 14:13

नए सिरे से / प्रेमरंजन अनिमेष

किसी भोर उठ
एक नये जाये
बाछे-सा महसूस करता हूँ

और सूँघता फिरता हूँ दुनिया को
अपने टटके सुथ्थर
नथुने से !