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नकली हँसे खूब / कुमार रवींद्र

क्या बतलाएँ
महानगर में
ऊब-थकन ही हुई खास है
 
कल पार्टी थी मोना के घर
उसमें नकली हँसे खूब सब
आये जो मेहमान
सभी थे
इक-दूजे से बढ़कर बेढब
 
खाली प्लेटें
सेंट्रल टेबिल पर रक्खे
जूठे गिलास हैं
 
अंदर से खोखले सभी थे
सबने डींगें बढ़-बढ़ हांकीं
रंग-बिरंगे चश्मों से थीं
सबने अपनी आँखें ढाँकीं
 
जलन-ईर्ष्या
नये वक्त की
और बढ़ गई भूख-प्यास है
 
सुबह-आये सब खीझ रहे हैं
जल्दी है ऑफिस जाने की
वीक-एंड तक
सुनो, चलेगी
कोशिश खुद को भरमाने की
 
फ्लैट रहेगा
दिन-भर खाली
मेज-कुर्सियाँ भी उदास हैं