Last modified on 12 सितम्बर 2017, at 16:21

नकेल / लालसिंह दिल / सत्यपाल सहगल

कौन तेरी नकेल खींच
ले जा रहा तुझे किधर?

तुझे
तेरा चारा नहीं मिला।

बिक चुकी है तेरी खाल
तेरी हड्डियों की क़ीमत लग चुकी है।

नाली की गन्ध सूँघने न दें
खींची हुई नकेलें।
जमा हुआ लहू तुम सूँघना चाहो।

काश ! कभी तुम यह जान सको
तुम्हारा अपना ही माँस
कितना स्वादिष्ट है।

मूल पंजाबी से अनुवाद : सत्यपाल सहगल