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नक्सलबाड़ी की जय / रमाकांत द्विवेदी 'रमता'

चला दमन का चक्र, छेड़ सोता सिंह जगाओ
धरती के भूखे कृषकों तक, राजनीति पहुँचाओ

लाठी-गोली-जेल-सेल से, जनता नहीं डरेगी
छोटी चिनगारी सारे, जंगल को क्षार करेगी

जमींदार-सेठों के टुकड़खोर, तुम्हारी क्षय हो
धरती के बेटों की जय, नक्सलबाड़ी की जय हो

रचनाकाल : 08.08.1967