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नगर प्रवेश / अपर्णा अनेकवर्णा

गोधूली बीत गई थी
नौसढ़ के पुल से नीचे बहती
राप्ती को देखा
पूर्वोत्तर दिखीं
धू-धू जलती दो चिताएँ
मृत्यु और अग्नि
दोनों सम्मोहित करतीं हैं

तब दिखीं नदी में भी
जलती दो चिताएँ
इस दुगुने ताप से दग्ध
गुज़रती जाती
लहर प्रति लहर - एक नदी
पल-पल जीया एक जीवन
प्रसंग-प्रसंग एक बन्धन
पीछे छोड़ स्मृतियों के
राख-राख अस्थि-फूल

कुछ अग्नि
कुछ जल
कुछ वायु
कुछ आकाश
और कुछ पृथ्वी में
ढूँढ़ लेंगे अपनी जगह
स्थापित हो जाएँगे यूँ
इससे पहले कहीं और
कभी थे ही नहीं
बस, स्मृतियों में
कभी कहीं चुभते रहेंगे