जब मैं देखती हूँ उन्हें
विश्वास भरी मीठी नजरों से
तब पाती हूँ उन्हें
आत्मविष्वासी
हरदम नया करने को तत्पर
सवालों से जूझते
पाती हूँ उन्हें
अपने बेहद करीब
मानो मेरे ही कितने
हाथ-पैर, आंखे-कान उग आए हों
पर जब मैं देखती हूंँ उन्हें
उलाहना देखती अविष्वासी नजरों से
पाती हूँ उन्हें
संकोची, भयभीत, आत्महीन
मेरा उन्हें देखने का नजरिया
कितना कुछ जोड़ जाता है उनमें।