तीस वर्षो तक गूँजती रही - अग्निवीणा । न तुम गा पाए । गाया और सुना केवल पक्षघात ने । अग्निवीणा बजाते रहे तुम । प्रिय ! मौत धीरे-धीरे बैठ गई तुममे पक्षाघात बन । अचानक तुम चुप हो गए । सब नहीं, पर विद्रोही बनते लोग आज भी गाते हैं - तुम्हारी अग्निवीणा ।