ढूंढती हैं नजर
मिल ही जाते हो तुम
कभी कैनवास पर बनी चित्रकारी में
कभी पक्षियों के झुंड में
कभी पेड़ की शाख पर
आवाज लगाती,
मुस्कराती हो
बुलाती हो
इठलाती हो और में
मुस्करा देता हूं अकेले ही अकेले
ये पागलपन हैं या दीवानापन?
भला कौन तय करेगा?
शायद कोई दीवाना।