Last modified on 18 सितम्बर 2011, at 00:35

नज़्म लौटा दो / त्रिपुरारि कुमार शर्मा

एक कदम पहले मुस्कुराहट से
कुछ दूर बाद हँसी की आहट से
नज़्म यहीं कहीं अटक गई है
मेरी रूह शायद भटक गई है
अपनी लौ के साथ उलझता हुआ
चिराग़े–याद जलता बुझता हुआ
आँखों में सुलगती उम्मीद कैसी
जा-ब-जा हर वक़्त ये दीद कैसी
दर्द के रिश्तों की आजमाईश है
सदियों से मेरी एक ही ख्वाहिश है
अपने होठों से मुस्कुरा दो मुझे
या फिर मेरी नज़्म लौटा दो मुझे