दर्जी ने वह पैंट बनायी,
जिसकी जग में हुई हँसाई।
स्वयं पहनने वाला हँसता,
बार-बार पेटी से कसता।
शायद कुछ नटखट था दर्जी,
ख़ूब चलायी उसने मर्ज़ी।
दर्जी ने वह पैंट बनायी,
जिसकी जग में हुई हँसाई।
स्वयं पहनने वाला हँसता,
बार-बार पेटी से कसता।
शायद कुछ नटखट था दर्जी,
ख़ूब चलायी उसने मर्ज़ी।