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नदियाँ प्यार की / सुदर्शन रत्नाकर

तुम्हारे विश्वास से
मेरे भीतर जाने
कितनी कितनी बहने लगती हैं
नदियाँ प्यार की और
भर जाता है
सागर के अथाह जल-सा मेरा मन
पर जब टूटता है
विश्वास का भ्रम तो
चरमरा जाती हैं
बीच की कड़ियाँ जो
बाँधती थीं कभी, तुम्हें और मुझे
पर अब छीजता सा,
खोखला होता मन
बींध बींध जाता है तन
और सूखने लगती हैं
नदियाँ प्यार की।