जंगल सूखे- बँटे सरोवर
बित्ता भर बस पानी
थके नीम पर पीले पत्ते
गिने चिरैया कानी
ओसारे में रेत उड़ाये
दुपहर सूनी-सूनी
तचे बरगदों की छाँही में
तडपे काँवर दूनी
कौन भरे
छूछी गागर को
नदिया धूप बिलानी
घर-घर
सूरज की पहुनाई
रस्ते लपटें ओढ़े
जली घास की
आहें सुनकर
झुलसे बरगद पोढ़े
सावन आये-
भादों आये
वादे वही ज़बानी