लट पट लटपट ललित लोचना,चली किधर सुध भूल ।
झट पट झटपट कलित पंकजा,लगा लिया पग शूल ।
डगर सगर पर कुश कंटक से,क्यों करती मन दीन,
नयन सुभग तन कोमल बाले,अनगिन वैरी फूल ।
गागर कटि तट धरे भामिनी,भरे कनी जल भाल,
घट-घट घटघट छलके यौवन,चूम रहा तन धूल ।
सरसी सरसी ताल भरे तू, बरखा मधुर फुहार,
छल-छल छलछल छलके जैसे,नदिया सागर कूल ।
नभ तल चमके दामिनि तड़पे,चली कहाँ बलखात,
दम-दम दमके सांवरि गोरी, प्रेम न समझे मूल ।