Last modified on 4 जनवरी 2011, at 00:58

नदी-सा बहता हुआ दिन / सत्यनारायण

कहाँ ढूँढ़ें--
नदी-सा
      बहता हुआ दिन ।

वह गगन भर धूप
सेनुर और सोना,
धार का दरपन
भँवर का फूल होना,
      हाँ,
      किनारों से
      कथा कहता हुआ दिन !

सूर्य का हर रोज़
नंगे पाँव चलना
घाटियों में हवा का
कपड़े बदलना,
      ओस
      कुहरा, घाम
      सब सहता हुआ दिन !

कौन देगा
मोरपंख से लिखे छन
रेतियों पर
सीप-शंखों से लिखे छन,
      आज
      कच्ची भीत-सा
      ढहता हुआ दिन !