Last modified on 22 मई 2018, at 12:13

नदी / बालकृष्ण गर्ग

पर्वत से वह निकाल-निकाल,
बहती रहती सँभल-सँभल।
आखिर सागर से जा मिल,
जीवन करती नदी सफल।

 [रचना : 10 मई 1996]