हमें भ्रम है
शिखर से उतर सागर की ओर
एक लम्बी यात्रा पर होती है नदी
नदी हमेशा होती है
किसी अजाने की तलाश में
भरती जाती है रास्ते भर के गड्ढे गड़हियां
तोड़ कर तटबंध खुद को उलीच कर अंजुरी से,
बंधी होने पर सागर के मोहपाश में
जारी रहता है
नदी का बहना बंध कर तटबंधो में भी
तटबंध ठिठके खड़े होते हैं घाटों पर
नीचे तक आ गई
ऊपर की सीढ़ियों से सटे हुए..
नदी जानती है
ठहरने का अर्थ
हमेशा ठहराव नहीं
न ही भटकने का अर्थ है रास्ता भूल जाना
कठिन है नदी होना
बहुत कठिन है
समझना नदी का होना