आजकल वह
एक उदास नदी बनी हुई है
वैसे ही जैसे कभी
ककड़ी बनी
अपने पिता के खेत में लगी थी
जिसे देखकर हर राह चलते के मुँह में
पानी आ जाता था
अपनी ही उमंग में
नाचती-कूदती-फिरती यहाँ-वहाँ
अचानक वह बाँध बन गई
कभी पेड़ बनकर
उन बादलों का इन्तज़ार करती रह गई
जो पिछली बार बरसने से पहले
फिर-फिर आने का वादा कर गए थे
ऐसे समय में जबकि
सब कुछ मिल जाता है डिब्बा-बन्द
एक नदी का उदास होना
बहुत बड़ी बात नहीं समझी जाती।