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नदी और समुद्र / केशव

तुम
एक नदी की तरह
समा गयी
समुद्र में
उस वक्त
समुद्र ने
फैलाई होंगी बाँहें
तुम्हारी ओर

तुम
कर सकती थीं ऐसा
नदी होकर ही

तुम
उतरी होओगी
समुद्र में
पर्त
दर
पर्त
ऊपर से इतना गहरा
दिखाई देने वाला समुद्र
हो सकता है
इतन उथला भी

तुम
नदी बनकर ही
यह जान पायी

और जब
समुद्र ने
एक लहर में बदलकर
नदी को
धकेल दिया किनारे की ओर
तब तुम्हें
समुद्र से टकराने की सुध आयी

नदी को हमेशा नहीं फेंकता किनारे की ओर
समुद्र
नदी को
पीता है
जीता है
जौर नदी के बिना कहीं रीता भी तो है
समुद्र

नदी बनकर
जितनी बार जाओगी
समुद्र की ओर बेग से
उतने ही वेग से
भरकर अपने को
और खाली कर तुम्हें
लौटा देगा
किनारे की ओर

लहर बन जाने का दर्द
तभी तुम्हें
नदी के संगीत तक ले जायेगा

लेकिन
नदी के मर्म तक भी तुम्हें
समुद्र ही पहँचायेगा।