देर तक देखा हम ने
नदी का बहना।
पर नहीं आया हमें
कुछ भी कहना।
फिर उठे हम, मुड़े चलने को;
तब नैन मिले,
हुए मानो जलने को;
एक को जो कहना था
दूसरे ने सुन लिया :
‘किसी भविष्य में नहीं, पिया!
न ही अतीत में कहीं,
तुम अनन्त काल तक इसी
वर्तमान में रहना!’
नयी दिल्ली, सितम्बर, 1969