Last modified on 15 अगस्त 2009, at 18:58

नदी के नाम / साँवर दइया

पहाड़ों से
टकराती
बल खाती
इठलाती
चली आ रही नदी
कभी मंद
कभी द्रुत गति से
हर किसी की प्यास बुझाती

मैं भी खड़ा था किनारे
लेकिन
मुझे तो
पानी की एक बूंद
न दी
मैं किस मुँह से कहूँ
तुम नदी हो !