Last modified on 29 जून 2019, at 00:47

नदी बहती है / रंजना गुप्ता

अहन्मन्यता के
अहँकार के पहाड़ों को
पार करती बहती है नदी

सौम्य शीतल जलधार
विरोध, अन्तर्विरोधों, बाधाओं को
ठेलती, परे धकेलती
फूटती है रसधार
निर्बाध, निरन्तर
 
विसँगतियों, वैमनस्यताओं के
दुर्गम पठार को करती दरकिनार
उत्तल उदधि के फेनिल तट
लहरो के कलरव, चञ्चल
अन्तर सी निर्मल
 
झर-झर बहती रहती है
नदी प्रेम की बहती है
कल-कल
छल-छल