Last modified on 21 अक्टूबर 2016, at 04:05

ननदी गे तैं विषम सोहागिनि / कबीर

ननदी गे तैं विषम सोहागिनि, तैं निन्दले संसारा गे॥1॥
आवत देखि मैं एक संग सूती, तैं औ खसम हमारा गे॥2॥
मोरे बाप के दुइ मेररुआ, मैं अरु मोर जेठानी गे॥3॥
जब हम रहलि रसिक के जग में, तबहि बात जग जानी गे॥4॥
माई मोर मुवलि पिता के संगे, सरा रचि मुवल सँगाती गे॥5॥
आपुहि मुवलि और ले मुवली, लोग कुटुंब संग साथी गे॥6॥
जाैं लौं श्वास रहे घट भीतर, तौ लौं कुशल परी हैं गे॥7॥
कहहि कबीर जब श्वास निकारियौ, मन्दिर अनल जरी हैं गे॥8॥