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नन्हा पौधा / वेंकटेश चन्द्र पाण्डेय

एक बीज था गया बहुत ही, गहराई में बोया
उसी बीज के अंतर में था नन्हा पौधा सोया
उस पौधे को मंद पवन ने आकर पास जगाया
नन्ही-नन्ही बूंदों ने फिर उस पर जल बरसाया
सूरज बोला ‘प्यारे पौधे’ निद्रा दूर भगाओ
अलसाई आँखे खोलो तुम उठकर बाहर आओ
आँख खोलकर नन्हें पौधे ने ली तब अंगड़ाई
एक अनोखी नयी शक्ति-सी उसके तन में आई
नींद छोड़ आलस्य त्यागकर पौधा बाहर आया
बाहर का संसार बड़ा ही अद्भुत उसने पाया