Last modified on 6 सितम्बर 2020, at 22:06

नन्हीं जी की रोटी / प्रभुदयाल श्रीवास्तव

आज हमारी नन्हीं जी ने,
रोटी सुन्दर गोल बनाई।

कई दिनों से सीख रही थी,
रोटी गोल बनेगी कैसे।
बन जाता आकार चीन सा,
कभी बना रशिया के जैसे।
बहुत दिनों के बाद अधूरी,
साध आज पूरी हो पाई।

हँसा गैस का चूल्हा, काला,
गूँगा, गोल तवा मुस्काया।
पटा और बेलन ने उससे,
हलो कहा और हाथ मिलाया।
भौंचक भोजन घर ने उसका,
स्वागत किया, गीतिका गाई।
ख़ुशी ख़ुशी से उस रोटी के,
माँ ने हिस्से पांच बनाये।
दादा, दादी, पापा, खुद ने,
नन्हीं जी ने मिलकर खाये।
फर्श, दीवारों छत ने भी दी,
नन्हीं को भरपूर बधाई।