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नन्हें फूल / शिशु पाल सिंह 'शिशु'

अरे गर्वीले नन्हें फूल!

दीन मधुप मधु पीने आये,
तेरे द्वारा जीने आये,
इन्हें विमुख लौटा देने से होगी भारी भूल
अरे गर्वीले नन्हें फूल!


यह वैभव है नहीं व्यष्टि का,
वास्तव में है सब समष्टि का,
जहाँ व्यक्तिगत- स्वार्थ अंकुरित हुआ वहीं है शूल
अरे गर्वीले नन्हें फूल!

यदि आवश्यकता से वंचित –
करके, रक्खा जाये संचित,
तो न पराग, पराग रहेगा हो जायेगा धूल
अरे गर्वीले नन्हें फूल!