Last modified on 6 सितम्बर 2020, at 22:06

नन्हें बच्चे / प्रभुदयाल श्रीवास्तव

पांच साल की प्यारी गुड़िया,
हर दिन जाती है स्कूल।

कंधे पर बस्ता होता है,
लंच बॉक्स उसके भीतर।
नवल धवल वस्त्रों में लगती,
जैसे फुदक रहा तीतर।
पानी की बोतल ले जाती,
उसमें होती कभी न भूल।

बाय बाय करती मम्मी से,
टाटा करती पापा से।
जय शंकर कहती दादी से,
राम राम दादाजी से।
नियम धरम की पूरी पक्की,
नहीं तोड़ती कभी उसूल।

बिना डरे ही बच्चों के संग,
वह बस में चढ़ जाती है।
लगता है जैसे सीमा पर
सैना लड़ने जाती है।
कभी कभी ऐसा लगता है,
उछल रहे चंपा के फूल।

नन्हें बच्चे नन्हीं बस से,
या मोटर से जाते हैं।
मस्ती करते धूम मचाते,
हँसते हैं मुस्काते हैं।
भर्र भर्र मोटर चल देती,
उड़ा उड़ा खुशियों की धूल।