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नन्हे मेहमान / माखनलाल चतुर्वेदी

महमान मेरे नन्हे से ओ महमान!
हम दोनों का मेल है तू ही,
जग का जीवन-खेल है तू ही,
नेह सींखचों जेल है तू ही,
ओ अम्मा के राजदुलारे
साजन की मुसकान।
महमान मेरे नन्हे-से ओ महमान!
माँ की सब तरुणाई वारी,
’उनकी’ लापरवाही वारी,
नाना की धन-दौलत वारी,
ओ गरीब के अमीर छोरे
दुख सुख की पहचान।
महमान मेरे नन्हे-से ओ महमान!
हरियाले दो मन पर फूला,
हम दो खम्भों पर तू झूला,
अरे कौन-सा रस्ता भूला,
नाना-सा धनवान, पिता-सा--
या होगा नादान!
महमान मेरे नन्हे-से ओ महमान!

रचनाकाल: खण्डवा-१९४०