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नब बाटक सन्धान / दीपा मिश्रा

जहिया अहाँक हृदयमे
सूर्यक उगब बंद भऽ जाए
बुझू प्रेम हरा गेल कतौ
अहाँ निष्प्राण होइत जाइत छी

हमरा सूर्य के बचेबाक अछि
अन्हारकेँ हरेबाक अछि
प्रेमक बीया ताकिके
रोपब ज़रूरी

प्रेमहीन हृदय के कतौ
छाँह नै भेटैत छै
ओ प्रेत जकाँ लटकल रहैये
गाछपर जीवन भरि

हम डराकेँ ओहि सूर्यकेँ
कसिया के पकड़ि लैत छी
ओ अपन भीतर
हमरा नुका लैये

हमर चारूकात
इजोत पसरि रहल
आइ भोर हमहूँ उगब
गाछ पात चिड़इ चुनमुनि संग

राति चुपचाप सुति गेल
कमलदहक राक्षस के खिस्सा
आब किओ नै सूनत
उठू, चलू, नब बाटक सन्धानमे!