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नभचुम्बी हिलकोर सौंप दी / विमल राजस्थानी

थका हुआ था, प्यास लगी थी
दो बूँदों की आस लगी थी
कोई सगा नहीं था पथ में
केवल मेरी प्यास सगी थी
प्यास बुझा दे बस इतना-सा
थोड़ा नीर विमल चाहा था
थोड़ा गंगाजल चाहा था
पर तुमने तो हृदय खोलकर, सुधा अपरिमित घोल-घोल कर
अमृत के उस महासिन्धु की नभचुम्बी हिलकोर सौंप दी
पलक-पालने मैंने मादक सपनों को दुलराना चाहा
तुमने, मेरे हाथों, हँसते-हँसते रेशम-डोर सौंप दी

जग के तीखे तेवर, कडुवे-
दंश झेल कर घबराया था
झाड़ी-झुरमुट रौंद-ठेलकर-
तेरे चरणों तक आया था

खुले गगन के तल काट दीं-
अनगिन रातें, गिनते तारे
कोई नहीं यहाँ था, काटूँ-
रातें जिसके संग-सहारे
काली रात सितारों वाली, जिसने सारी नींद चुरा ली
निकले एक तुम्हीं बस अपने, बने हकीकत सारे सपने
तुमने उषा-किरण थी भेजी, घोर तमिस्रा सहज सहेजी
मलय पवन की थपकी देकर, अमर सुहानी भोर सौंप दी