आमक गाछ फ'ड़ सँ लदल अछि
देखिते ठुट्ठ पाकड़ि तान देलक
उपहासक तान
सुड्डाह क' लेलें अपन स्वाभिमान
एकरा नम्रता कोना कहबौ
हमरा देखें हम गरीब छी
फ'ड़विहीन छी
मुदा किओ नहि बूझत जे दुखित छी.
ककरो लग नांगड़ि नहि डोलबैत छी...
शान सँ जीबैत छी
भूखल रहैत छी
मुदा छी धरि स्वाभिमानी!!!!
राणा प्रताप जकाँ
आमक गाछ हंसल ...
यौ बाउ एतेक नहि अगुताउ
किए' करय छी राणा सँ तुलना
ओ त' मातृ सिनेही छलाह
मायक अस्तित्वक रक्षार्थ दृढ रहथि
अहँक ई दृढ़ता नहि
व्यर्थ अहंकार थिक
जकरा किछु नहि रहैछ
ओ एहिना उताहुल रहैछ
ह'म नांगड़ि डोलाउन नहि
राणा जकाँ मातृभक्त छी
अपन ठाढ़ि पात झुका क'
वसुंधराक प्रति कृतज्ञता देखबैत छियनि
"हे माय अहाँ अपन करेज फाड़ि
हमरा जन्म देलहुँ
कतेक व्यथा सहने होयब
लिअ' आब हम संतति बनि
अपनेक आँचर मे अहँक लगायल...
फल द' रहल छी
पाकत त' खसा देब
मनुक्ख सँ ल' क'
गीदड़ चिरैं चुनमुन्नी केँ खुआ देब
अहाँ माय छी ...
अपन करेज केँ कोरि .
वायु , ज'ल , भोजन संचारी छी
हमरो त' किछु कर्त्तव्य ?
तें हम झुकि क' समर्पण क' रहलहुँ
नमन क' रहलहुँ
दुष्ट पाकड़ि उद्विग्न भ' गेल
जखन एकटा दुष्ट लोक
कर्म सँ, विचार सँ
रीति सँ व्यवहार सँ
पराजित भ' जाइछ
तखन ओकरा मे गराइन
स्वाभाविक आ लाक्षणिक
पाकड़ि सेहो दुष्ट मानवक संग रहल
संसर्गे सँ दोख -गुण होइछ
करय लागल बिहाड़िक कामना
पवन सँ प्रार्थना
वातक झकझोरि बहाउ
हमरा उजाड़ि.. जड़ि सँ उखाड़ि
"ओहि अहंकारी आम पर खसाउ"
हम आब मरय चाहैत छी
मुदा! ओकरो जीबय नहि देब..
वाह! कलियुगी मानव की क' देलें
अपना संग संग जीवनदायी
गाछ-वृछ केँ सेहो दुष्ट बना देलें
वात बहल बसात बहल
झांट बरखा संग बिहाड़ि
देलक पाकड़ि केँ जड़ि सँ उखाड़ि
पाकड़ि खसल मुदा उनटा
आम पूब दिश छल
पाकड़ि पच्छिम भ'र खसल
दुष्टक क्षय भेल
नमन क जय भेल