घटाटोप अँधियारे पथ पर
तड़ित प्रभा में
गहरी खाई निरख हतप्रभ,
जब राही के बढ़े क़दम रुक जायें
उस क्षण का रोमांच सोचिये।
उस क्षण भर की ज्योति
नमन स्वीकार करो।
चोटी से लुढ़का मानव जब
काल गाल से सारे ही संत्रास भुगतकर
गिरताहै
गिर कर पाता है
नरम सुकोमल दूर्वादल की गोद
चकित नयन ताकता गगन की ओर,
उस क्षण का रोमांच सोचिये
ओ दूर्वादल वृन्द
नमन स्वीकार करो।
ह्रदय युगल लेकर सपनों की नाव
तिरे जीवन सागर में,
कभी पवन अलकों से खेला,
और कभी प्रलयंकर झंझावात,
चली बारात,
कि सपने आते-जाते,
स्नेहिल प्राणों से सिंचित मधुकोष
और कुछ–कुछ भर जाते।
जीवन संध्या में नवीन प्राणो से झंकृत गान,
स्वप्न साकार हो गये।
पल उस पल की तान सोचिये,
अरी भरी-पूरी सपनीली तान,
नमन स्वीकार करो।
उठा घोर तूफान
गरजता सिंधु
भँवर के बीच
विहँसती नाव, थिरकती नाव,
छोड़कर डूबा माझी, आह,
अब नवीन हाथों ने ली पतवार,
हिली पतवार, चली फिर नाव,
क्षुब्ध लहरें नम-नम—सी,
ओ रोती मुस्कान सोचिये,
पुनः–पुनः अंकुरित, पल्लवित बीज
नमन स्वीकार करो।