एकांत कोने में
गुमसुम-सी कहीँ
छुपी हुई है
मेरे अंदर एक
तन्हाई
जो पुकारती है
मुझे सालो से
एवं देखती है
मेरे अंदर छुपे
वात्सल्य को
प्रेम को
जो उड़ेलना
चाहती है
किसी अपने पर
जो दे सके मन को
अपार सुकूँ एवं
एहसास दिला दे
उसे नयेपन का
जो खाली पड़े
मन में बार-बार
यक्ष प्रश्न दाग जाता है॥