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नयी बस्तियों की तरफ / गोबिन्द प्रसाद


नये-नये दोस्त होंगे
नये संग-सहारे होंगे
जहाँ पहुँचूँगा मुरादों का सफ़र तय करके
कुछ फिदा मुझ पर
तो कुछ लोग ख़फ़ा भी होंगे
दोस्तों के साथ अब तो दुश्मन भी नये होंगे

माँ की नींद में
बच्चों ने करवट ली होंगी
तो किसी ने सहसा गलियारे में किलक भरी होगी
सीढ़ियों से ज़रा हटकर
किसी कोने में आँख मलते हुए
ख़ुद को सहेजते
अँगीठी किसी ने दहकायी
उठ रहा होगा धुँआ
कोई ऐसी भी होगी
जिसकी अलसायी आँखों में
झाँक रहा होगा कुआँ
सुबह से पहले परिन्दे भी
अपनी उड़ान में गुम होंगे
अजनबियों के बीच
अपना-सा
दिन जो बीत गया
खुली आँखों में सपना-सा...

यादों की किताब बन्द करता हूँ
बहरहाल मैं भी चलता हूँ घर से
बाहर आने को भीतर से
रातों के ख़ाब झटककर
नयी चादर बुनने को,रंग नये भरने को
नयी बस्तियों की तरफ़ चलता हूँ

सूरज को भी नये तार से बुनना होगा
धरती को भी राग नये सुनाने होंगे