Last modified on 19 सितम्बर 2011, at 13:17

नयी होती हुई / नंदकिशोर आचार्य


आओ
न सही मेंह-सी
रेत-सी ही सही
आँधी-सी घेर लो
तपता हुआ आकाश
भरने दो रोम-रोम
अपने से
झरने दो
अपने को
नयी होती हुई।

(1991)