मैं बचपन से चिन्तित था
कि स्वर्ग किस तरह पहुँच पाऊँगा!
पर जब पढ़-लिखकर
मंदिर, कालेज, धर्मशाला में लगी
'स्वर्गीय सेठ की स्मृति में निर्मित'
संगमरमर की तख़्तियों को पढ़ा
तो मैंने तय कर लिया
कि जहाँ ऎसे लोग गए हैं
मैं उस स्वर्ग में हरगिज़ नहीं जाऊँगा ।
ऎसे स्वर्ग से तो नरक बेहतर है
स्वर्ग में सेठ
और नरक में मेहतर है !