लोहे की धार
काट देती है पेड़ को
कुल्हाड़ी बन
जीवन को तलवार बन
धरती का गर्भ चीर
कठोर मिट्टी को
बना देती है उपजाऊ
खुरपी, कुदाल बन
क्या नहीं कर सकती धार
पर भोथरी हो जाती है
नर्म को काटते हुए
रसोई का चाकू बन
नर्म भी तो तीखी धार
हो जाता है
काट डालता है शमी वृक्ष को
पद्म पंखुरी की धार से