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नहीं, युलिसीज़ / अज्ञेय

नहीं, युलिसीज़
न तुम्हें कभी मिलेगी इथाका
न मुझे कभी द्वारका।
वापसी में यों भी
कोई नगर नहीं मिलते :
प्रवासी लौटते तो हैं
पर उनकी घर-वापसी नहीं होती
जहाँ वापसी होती है वहाँ उनके घर नहीं होते :
उन्हें कोई नहीं पहचानता।
सागर ही उनका घर है
जो एक दिन उन नगरों को भी लील लेगा-
तुम्हारी इथाका को, युलिसीज़,
और मेरी द्वारका को।
सागर ही है
जो अपनी पहचान कभी नहीं खोता।