लाखों लोगों के बीच
अपरिचित अजनबी
भला,
कोई कैसे रहे!
उमड़ती भीड़ में
अकेलेपन का दंश
भला,
कोई कैसे सहे!
असंख्य आवाज़ों के
शोर में
किसी से अपनी बात
भला,
कोई कैसे कहे!
लाखों लोगों के बीच
अपरिचित अजनबी
भला,
कोई कैसे रहे!
उमड़ती भीड़ में
अकेलेपन का दंश
भला,
कोई कैसे सहे!
असंख्य आवाज़ों के
शोर में
किसी से अपनी बात
भला,
कोई कैसे कहे!