नहीं
आंख की हद तक
कहीं भी तो नहीं सागर
फिर भी तू
उफनती
भागती है सांय-सांय.....सांय.....
कहां किसमें
जा समाएगी
ओ रेत की नदी
नहीं
आंख की हद तक
कहीं भी तो नहीं सागर
फिर भी तू
उफनती
भागती है सांय-सांय.....सांय.....
कहां किसमें
जा समाएगी
ओ रेत की नदी