अब नहीं रहे मेरे पास
वह रेशमी ताने -बाने
जिनसे मैं
एक -एक क्षण को
बुन लिया करती थी
अँधेरी रात के
किसी एक ही क्षण में
अब तुम नहीं काट पाओगे
अपनी स्नेह - धार से
मेरे प्रतिशोध के
कठोर संकल्पों को
अब मैं जी तो सकती हूँ
एक आशा विहीन
रिक्त जीवन
मगर अब
नहीं सह सकती
अपनी मृत अपमानित
भावनाओं के ताने ।
अब नहीं है मन को
उड़ने का कोई प्रलोभन
और अब न ही
आकाश की यह
अनंत ऊँचाइयाँ
( तुम्हारी छलिया दृष्टि )
बुला पाएँगी
मेरे टूटे हुए
पंखों को।