न नदी हुई कामधेनु
न नीर हुआ निर्मल
न शिला हुई अहल्या
न गिरि-शिखर स्वर्ग
कुछ भी तो नहीं हुआ
विगत चार दशकों में जैसा वर्णित है
महाकाव्यों, पोथियों और पुराणों में।
हुआ जो अकर्म, वह छपा
सत्यकथायें बन अखबारों में।
नहीं कहा गया वह तो घटा मन में
सहज जीवन में,
नहीं बनी पुराकथा
नहीं बना समाचार सनसनीखेज
व्यर्थ ही गया यौवन।