जन्म और मृत्यु के बीच
कुछ भी नहीं
जो इन्हें कोई अर्थ दे सके
जिस के अभाव में
निहायत ही ऊब भरी हो गयी हैं
नींद लेने के अतिरिक्त
सभी मानवीय क्रियाएँ
सभी शब्दकोष
एक ही शब्द-ईश्वर-द्वारा
डँस लिए गए हैं !
लेकिन मैं नही डँसा जाना चाहता
और इसीलिए साँप का मुँह
दबा लिया है एड़ी के नीचे
किन्तु उसकी गुँजलक में
बुरी तरह कसा जा रहा है
मेरा अस्तित्व
सुन्न होती जा रही है
मेरी चेतना
और लगता है कि
अब हड्डियाँ चटखने को ही हैं .....
(1968)