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नहीं चाहता राज्य चक्रवर्ती / हनुमानप्रसाद पोद्दार

  (राग भैरवी-ताल कहरवा)

 नहीं चाहता राज्य चक्रवर्ती, मैं नहीं चाहता स्वर्ग।
 नहीं चाहता विधि-सुरपति-पद, नहीं चाहता मैं अपवर्ग॥
 नहीं चाहता योग-सिद्धि मैं, नहीं चाहता पद पाताल।
 नहीं चाहता मुक्ति चतुर्विध, दुर्लभ सालोक्यादि विशाल॥
 जन्म-जन्ममें बनी रहे मन प्रियतमकी स्मृति मधुर अबाध।
 रहे छलकता श्याम-रूप-रस-सुधा-‌उदधि उर मध्य अगाध॥
 डूबा रहूँ उसीमें संतत, रहे न अन्य राग-रति-काम।
 दिखता रहे सदा मुसकाता, प्रियतम-मुख सुखभरा ललाम॥