चाहकर भी मैं
तुम्हें अपनी पतंग नहीं बना सका
नहीं उड़ा सका
उसे अपनी छत पर
आसमान में
मैं तुम्हें अपनी नाव भी
नहीं बना सका
पार कर लेता
मैं जिससे यह भंवर
मैं तुम्हें इस बरसात में
एक छाता भी नहीं बना सका
बच जाता मैं
भीगने से इस बारिश में
मैं तुम्हें अपनी क़लम भी
नहीं बना सका
नहीं बना सका स्याही
और न ही काग़ज़
कुछ उकेर लेता अपना दर्द
लिख लेता कुछ ऐसा
जो होता जीवन में कुछ सार्थक
छत, घर, सीढ़ियाँ
दरवाज़े और खिड़कियाँ बनाने की तो बात बहुत दूर
मैं तुम्हें अपनी कोई चीज़ नहीं बना सका
मूर्त या अमूर्त
नहीं था वह हुनर मुझे
किसी को अपना बनाने का
चाहता तो मैं था
तुम्हारी साँस बन जाना
चाहता था तो मैं
तुम बन जाती मेरे लिए हवा
तुम नहीं बनी कुछ तो
उतना दुख नहीं था
पर दुख इस बात का ज्यादा है
तुमने मुझे कुछ भी नहीं बनाया अपना
जबकि मैं तैयार था
तुम्हारा बहुत कुछ बनने को
पतंग से लेकर
आईने तक
और फिर साँस तक
खड़ा हूँ मैं वर्षों से
रास्ते में तुम्हारे
फूल बनने को
आज तक
पर तुमने तो मुझे काँटा भी बनने नहीं दिया
जो उलझ कर थाम लेता तुम्हें तुम्हारे दुपट्टे सहित